बस चल रही है जिंदगी, उस रब के नाम पर ।
उम्मीद है सुबह की, भरोसा है शाम पर ।।
घर की दर-ओ-दीवार पर, ये मेहरबां है आसमां,
कोई छत नहीं है दोस्तो , मेरे मकान पर ।।
मुतमईन हूँ मैं, दर्द की दासतां दबी होगी,
देखो फूल भी ,मुरझा गये है इस निशान पर ।।
वो बेमुराद माज़ी , जब जब भी याद आया,
तड़फा मैं बेतहाशा, खुद के अंजाम पर ।।
सजायाफ्ता है हम भी, सफ्फाक उस नजर के,
मेरी जल रही जमीं , है धुआं आसमान पर ।।
कयामत के रोज वर्क से, कोई नहीं बचेगा,
कुछ हो चुके मुखातिब , कुछ है निशान पर ।।
------मनीष प्रताप सिंह 'मोहन'
कृपया टिप्पणी के माध्यम से अपनी अनुभूति को व्यक्त अवश्य करें।
आपकी टिप्पणियाँ हमारे लिये अति महत्वपूर्ण है।
उम्मीद है सुबह की, भरोसा है शाम पर ।।
घर की दर-ओ-दीवार पर, ये मेहरबां है आसमां,
कोई छत नहीं है दोस्तो , मेरे मकान पर ।।
मुतमईन हूँ मैं, दर्द की दासतां दबी होगी,
देखो फूल भी ,मुरझा गये है इस निशान पर ।।
वो बेमुराद माज़ी , जब जब भी याद आया,
तड़फा मैं बेतहाशा, खुद के अंजाम पर ।।
सजायाफ्ता है हम भी, सफ्फाक उस नजर के,
मेरी जल रही जमीं , है धुआं आसमान पर ।।
कयामत के रोज वर्क से, कोई नहीं बचेगा,
कुछ हो चुके मुखातिब , कुछ है निशान पर ।।
------मनीष प्रताप सिंह 'मोहन'
कृपया टिप्पणी के माध्यम से अपनी अनुभूति को व्यक्त अवश्य करें।
आपकी टिप्पणियाँ हमारे लिये अति महत्वपूर्ण है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें