बुधवार, 30 मार्च 2016

मेरी खुद जिंदगी, बेवफा हो गयी

जिंदगी से खुशी सब, दफा हो गयी।
मौत भी कम्बख्त अब, खफा हो गयी।

उन दिनों कुछ हवाऐं, चलीं इस तरह,
जिंदगी काफी हद तक, तवाह हो गयी।

हमने भूलों को रस्ते, दिखाऐ मगर,
राह मेरी ही मुझको ,दगा दे गयी।

लोग कहते है जिसको, मेरी जिंदगी,
मौत से भी  वह बदतर, सदा से रही।

हम अकीदत के जल को, चढायें कहाँ,
मेरी खुद जिंदगी, बेवफा हो गयी।



                       -----मनीष प्रताप  सिंह 'मोहन'
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सोमवार, 21 मार्च 2016

मिरे खेतों को पानी का ,भरोसा दे गया बादल,

वो नंगे पांव कांटों पर ,मेरा हँसकर गुजर जाना।
राह में ठोकरें खाकर के ,गिरना और सम्हल जाना।

मेरी आँखों से कागज पर,महज टपका था इक आँसू,
नहीं मालूम है मुझको, गज़ल गीतों का बन जाना।

हसीं सपने जो आँखों में ,वो तुमने ही दिखाये थे,
महज़ वोटों की खातिर था,तुम्हारा रंग बदल जाना।

किन्हीं मजबूर आँखों में ,उजाला भर सके तो सुन,
नहीं तुझको जरूरी अब,कहीं मंदिर तलक जाना।

मिरे खेतों को पानी का ,भरोसा दे गया बादल,
किसानों की यही किस्मत, वो बारिश का मुकर जाना।

यकीनन ये शरारत भी, तो पतझड़ की रही होगी,
मेरी उम्मीद की कलियों को, चुपके से कुतर जाना।

हमारी  आँख  में  आँसू , उदासी गर  नहीं  होते,
तो मुमकिन ही नहीं 'मोहन',गज़ल गीतों का ढल पाना।



                    -----मनीष प्रताप  सिंह 'मोहन'
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शुक्रवार, 18 मार्च 2016

न आयेगी .....

एक दिन मैं बैठा आँगन में
दीवारों के उस पार 
क्षितिज को देख
कुछ विचार कर रहा था मन में
तभी अचानक एक चिड़िया आयी
फुदकती गाना गाती
कूड़े में से कुरेद कर कुछ खाती
फिर एक चिड़िया और आयी
एक और आयी
कुछ और आयीं
कुरेद कर कूड़ा वे खाने लगी
मुझे उनका आना अच्छा लगा
और उनपर दया भी आयी
मैंने मुट्ठी भर दाने बिखरा दिये आँगन में
सोचा कि अब जब भी कोई चिड़िया आयेगी
तो कूड़े के बजाय स्वच्छ दाने खायेगी
लेकिन मुझे क्या पता था दोस्तो
दाना डालने के बाद एक चिड़िया भी न आयेगी....


                             ------मनीष प्रताप  सिंह 'मोहन'
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शुक्रवार, 11 मार्च 2016

चुन -चुन कर जिंदगी के , अरमान जला देता है। गज़ल

मुफलिस को जिंदगी में , जीना भी बता देता है।
गुमां ,गुरूर, अकड़ सब, पल भर में झुका देता है ।

हों मजबूरियां या चोचले, थोड़ा सा सब्र कर,
वक़्त वो मुर्शिद है जो , हर इल्म सिखा देता है।

उजाले की ज़रा कीमत तो, तुम उस शख्स से पूछो,
चुन -चुन कर जिंदगी के  , अरमान जला देता है।

भरी महफिल में करके इल्म , वो हँसने हँसाने का,
तिल तिल हुई उस मौत का, हर जख्म छिपा लेता है।

मानू  में कैसे स्वर्ग में,कोई भी गम नहीं,
बरसात का पानी मुझे, हर राज बता देता है।

मिला है ये सिला मुझको, मेरी सादा मिजाजी का,
हर शख्स मुझे जीने का, अंदाज बता देता है।
    

                             -----मनीष प्रताप  सिंह 'मोहन'
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शुक्रवार, 4 मार्च 2016

शिक्षको चुनौती स्वीकारो, भारत का भाग्य बदल डालो,

अब उठो शिक्षको भोर हुई, कुरुक्षेत्र में जाना ही होगा ।
जो वचन दिया भारत माँ को ,करके दिखलाना ही होगा।

गांडीव उठा लो हाथों का, बध करो अँधेरी रातों का,
तुम 'ज्ञान बाण ' संधान करो, अज्ञान मिटाना ही होगा।

उस 'विश्व गुरु' भारत का फिर, दुनिया में परचम लहरा दो,
शिक्षको तरासो भारत को, यह देश बचाना ही होगा ।

संस्कृति डूबती जाती है ,उन पश्चिम के आगोशों में,
प्रण करो आज हुंकार भरो, अब चीर बढाना ही होगा ।

शिशु कर्णधार, इनको सम्हार, इस रचना का शिक्षक कुम्हार,
नव सृजन हो सके अब 'मोहन' , वह गीत सुनाना ही होगा ।

शिक्षको चुनौती स्वीकारो,  भारत का भाग्य बदल डालो,
घर घर में 'ज्ञान दिवाली' हो, हर दीप जलाना ही होगा ।

                   -----मनीष प्रताप  सिंह 'मोहन' कृपया टिप्पणी के माध्यम से अपनी अनुभूति को व्यक्त अवश्य करें।  आपकी टिप्पणियाँ हमारे लिये अति महत्वपूर्ण है।