शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

बीते हुए 'एक वक्त' सा , बस छूटता रहता हूं मैं।

पूछते है लोग, आखिर अब कहाँ रहता हूं मैं?
अब तो केवल चुप हूँ, कुछ नहीं कहता हूँ मैं।

'उसके साथ तेरी मुस्कुराती तस्वीर' में कहीं,
रुसवाइयों में खुद को अक्सर, ढूंढता रहता हूँ मैं।

पल पल चुभन, और दर्द के  क्रूरतम आगोश में,
लहरों में तेरा अक्श, और फिर टूटता रहता हूँ मैं।

गुजरे हुए कारवां की, उडती हुई उस धूल में
बीते हुए 'एक वक्त' सा , बस छूटता रहता हूं मैं।

उस तलब , उस बेबसी की , दासतानें क्या कहूँ
खुद ही मना लेता हूँ, खुद ही रूठता रहता हूं मैं ।

बस कलम का साथ लेकर, कागजों की भीड़ पर,
धधकती  ज्वालामुखी  सा ,  फूटता  रहता  हूँ मैं ।


                      ©---मनीष प्रताप  सिंह 'मोहन'

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19 टिप्‍पणियां:

अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

आपका बहुत बहुत आभार अनीता जी।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

सुंदर, सराहनीय सृजन ।

अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

धन्यवाद जिज्ञासा जी।

Meena Bhardwaj ने कहा…

सुन्दर सृजन ।

अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

आभार ।मीना जी।

Ankit choudhary ने कहा…

सुंदर रचना🙏

अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

आपका आभार अंकित जी।

विश्वमोहन ने कहा…

बहुत सुंदर ।

Bharti Das ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सृजन
नववर्ष मंगलमय हो

अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

धन्यवाद भारती जी

अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

धन्यवाद विश्वमोहन जी

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बस कलम का साथ लेकर, कागजों की भीड़ पर,
धधकती ज्वालामुखी सा , फूटता रहता हूँ मैं ।

कलम का साथ बना रहे ।
बेहतरीन ग़ज़ल

अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

जब आपका बहुत बहुत आभार संगीता जी।

मन की वीणा ने कहा…

संवेदनाओं को समेटे बेहतरीन सृजन।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं आपको सह परिवार जनों के।

अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

बहुत शुक्रिया आपका , मन की वीणा जी।

कविता रावत ने कहा…

सच एक आग जरुरी है जिन्दा रहने के लिए,
बहुत सुन्दर

अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

धन्यवाद कविता जी।

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर

अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

शुक्रिया आलोक जी