सोमवार, 30 मई 2016

कब तक करें भरोसा, परवरदिगार का।

किये ही दे रही है, मेरे घर को आग खा़क,
कब तक करें भरोसा, परवरदिगार का।

दिवाली के हर दिये में, उदासी की झलक है,
खत्म हो रहा है वक्त, उनके इंतज़ार का।

लगती गमों की महफिल ,हर ढलती शाम को,
छिड़ता है स्वर मधुर तब, मन के सितार का।

कहने लगे सितारे , था चाँद साथ में,
सो जाओ अब बदल गया है, रुख बयार का।

मजबूरियों की धूप में, मेरे पैर जल गये,
तुम मत बनाओ किस्सा, 'मोहन' की हार का।

अब क्या बताऐं सबको ,क्या बात हो गई?
है काम समझने का ,  खुद समझदार का।




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शनिवार, 21 मई 2016

नज़रों का धोखा था वो, सादिक वफा नहीं थी,

शिद्दत से उसको ढूँढा, भटका हूँ हर जगह पर, 
लेकिन न वो मिला,  मुझे जिसकी तलाश है।

चल-चल के रहगुजर में, जूते घिसे और पैर भी,
मंजिल के अब तलक हम, फिर भी न पास है।

नज़रों का धोखा था वो, सादिक वफा नहीं थी,
बस शौक है ये उनका, उनका लिबास  है।

खालिक की जुफ्तजू में, अब तो कारवां भी खो गया,
इस सफर-ऐ-आखिरत में, अब काफी हताश है।

रस्म-ए-दिवालियों में, कैसे दिये  जलाऐं,
वो आये नहीं है अब तलक, आने की आस है।

महफिल में सबके साथ में, हँसना तो महज फर्ज है,
हकीकत हमारी दुनियाँँ, काफी  उदास है।


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शनिवार, 7 मई 2016

भारत विकास रथ की खातिर, शिक्षको सारथी बन जाओ,

अज्ञान अंधेरी  रातों सा, इल्मी कंदील जला डालो।
 दूर अशिक्षा  करने को ,अब ईंट से ईंट बजा डालो।

कथनी से करनी तक पहुँचो,भारत माँ के आँसू पौंछो,

कंधे से कंधा मिला रहे ,और दीप से दीप जला डालो।

भारत आगे बढ़ पायेगा, पहले तुमको बढना होगा,
जो किले बनाए भ्रष्टों ने, तुम उनकी नीव हिला डालो।

बिषबृक्ष पनपता भारत में, पश्चिम के बुरे रिवाजों का,
शिक्षा से जड़ें उखाड़ो तुम, और नाम-ओ-निशां मिटा डालो।

भारत विकास रथ की खातिर, शिक्षको सारथी बन जाओ,
ये शिशु भविष्य के भारत हैं, तुम इनको पार्थ बना डालो।

गंगा के पावन पानी की, तुम्हें कसम है आज जवानी की,
या तो तस्वीर बदल दो तुम, या अपना शीश कटा  डालो।


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