जिंदा लोगों को ,न फिर से, लाशों मे सुमारा जाये।
ऐ खुदा खैर करो , वो लम्हा न दुवारा आये।।
जलाए है आशियाने , दो पल के उजाले ने,
मेरे अंधेरों में कोई दीपक, फिर से न जलाया जाये।
आँखें वयान करती है , दासता -ए-मुकद्दर,
आँसू पर किसी हँसी को, बाजिव न बताया जाये।
अब तो जिंदगी का मकसद, मतलब परस्तियां है
अन्दाज-ए-वफा सूरत से, हरगिज़ न लगाया जाये।
इन गीतों में सिर्फ मेरी ,हकीकत ही वयां होगी,
इल्जाम कोई फिर से, झूठा न लगाया जाये।
सफ्फाक सितमगरों को ,सर-ए-आम सजा देदो,
'मोहन' किसी को फिर से, सायर न बनाया जाये
----मनीष प्रताप सिंह 'मोहन'
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