मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

धुँधली होती तस्वीर

रेगिस्तान  के किसी कोने में 
बनाया हुआ है मैंने
अपना एक छोटा सा घर
जिसमें चारो ओर 
खिड़कियाँ और दरवाजे ही हैं।
उस घर में लगा  रखी है
एक तस्वीर
और एक गुलदस्ता
हवा के आवारा झोके 
उसमें होकर 
यूँ निकल जाते हैं
जैसे कि कुछ है ही नहीं
और छोड़ जाते है
साथ लायी हुई धूल की चादर
जो कि परत दर परत
छायी जा रही है
और धूसरित होता जा रहा है गुलदस्ता
धुँधली होती जा रही है वह तस्वीर ।

                    -----मनीष प्रताप  सिंह 'मोहन'



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