सोमवार, 25 जनवरी 2016

सफल आदमी का हर बदनाम, बदल जाता है।

  गीत  या  गज़ल  या  कविता कुछ भी समझ लो

आदमी नहीं बदलता, बस लिबास बदल जाता है।

दोस्त नहीं बदलते, विश्वास बदल जाता है।।


अमीरी और गरीबी में , शुरू होता है फर्क वहीं से,

जब इन्सान का ,होश-ओ-हबास बदल जाता है।।


'मोहन' न मानो बात तो, तुम आजमा कर देख लो,

मुसीबत के कठिन दौर में ,हर खास बदल जाता है।।


ये खासियत है आज के ,जमाने के न्याय की ,

ग़र उनमें दम अधिक है, तो इंसाफ बदल जाता है

यद्यपि मैं चलता हूँ, अपने इन्हीं दो पैरों से,

पर रोशनी में चलने का, अन्दाज़ बदल जाता है ।।

बिकने बाली हर तश्वीर में, शक्ल तो वही है,

पर अमीरों के बास्ते, बस दाम बदल जाता है ।।

असफलता ही गुनाह है, इस आज के जमाने में,

सफल आदमी का हर , बदनाम बदल जाता है ।।

सुनाने को तो मैं भी ,सुना दूँगा हाथ फैलाकर,

पर धसकने लगती है धरती, आसमान बदल जाता है ।।


.............ये रचना आपको कैसी लगी कमेंट करके अवश्य बतायें

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अच्छी कोशिश।

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छी कोशिश भाइए

श्री हरि समिति ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

यसोदा जी मैं अपनी लिखी हुई रचनाओं को ही इस ब्लॉग पर पोस्ट करता हूँ।

ये रचना भी मेरी ही कोशिश है