सोमवार, 27 दिसंबर 2021

हमने भी करके देख लिया, ये इश्क गुलाबों वाला




वो मातमी मंजर था ,जलती सी चिताओं वाला ।
अश्कों की बारिशों में, चुभती सी हवाओं वाला ।

फिर बेचैनियों के दरमियां,मौसम की खबर आई

अब अर्थ खो चुका है, हर लफ्ज़ बफाओं वाला।

कांटों के जख्म हाथों पर, रुसवाईयों के दिल पर,
हमने भी करके देखा है ,ये इश्क गुलाबों  वाला।

बफा ,कसमें, और वादे, बेरंग सब ही निकले,
जैसे पन्नों में छिपा हो सूखा,फूल किताबों वाला।

अब यूं ही नहीं अंधेरा, इन वीरान बस्तियों में
बहुत दूर जा चुका है, वो शख्स चिरागों वाला ।

वक्त बदला,हवा बदली,रुख बदल गया सितारों का
अब रूबरू होना भी है, बस रस्म रिवाजों वाला।

   ©-----मनीष प्रताप  सिंह 'मोहन'

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14 टिप्‍पणियां:

  1. वक्त बदला,हवा बदली,रुख बदल गया सितारों का
    अब रूबरू होना भी है, बस रस्म रिवाजों वाला।
    ----- बहुत खूब।

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  2. मेरी पक्तियों को अपने मंच पर जगह देने का बहुत शुक्रिया जी

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  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-12-2021) को चर्चा मंच       "भीड़ नेताओं की छटनी चाहिए"  (चर्चा अंक-4293)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  4. वाह! बहुत उम्दा रचना । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  5. बहुत सुंदर रचना।
    शुभकामनाएँ

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  6. फिर बेचैनियों के दरमियां,मौसम की खबर आई
    अब अर्थ खो चुका है, हर लफ्ज़ बफाओं वाला।
    अब यूं ही नहीं अंधेरा, इन वीरान बस्तियों में
    बहुत दूर जा चुका है, वो शख्स चिरागों वाला ।
    वाह!लाजवाब

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  7. अच्छा हुआ कि इश्क़ करके देख लिया गुलाबों वाला .... अब काँटे चुभन तो लाज़मी था ।
    उम्दा ग़ज़ल ।

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  8. सच कहा आपने सुनीता जी।
    आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

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